नवरात्र का अंतिम दिन आज, जानिए, मां सिद्धिदात्री की पूजन विधि, मंत्र, आरती और महत्व
Indian Astrology | 01-Apr-2020
Views: 6411नवरात्र के नौवें यानी अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। यह मां दुर्गा का मोक्ष और सिद्धि देने वाला स्वरूप है। ऐसा माना जाता है कि अगर आपने नवरात्र के आठ दिन श्रद्धापूर्वक व्रत और पूजन किया है तो सिद्धि वाले दिन मां आपकी सभी इच्छाएं पूरी करती हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार देव, दानव, किन्नर, ऋषि-मुनि, साधक और गृहस्थ आश्रम में जीवनयापन करने वाले सभी लोगों ने मां सिद्धात्री की पूजा की थी। इनकी पूजा करने से यश, बल और धन की प्राप्ति होती है।
सिद्धि प्रदान करने वाला है मां का स्वरूप
मां का स्वरूप महाविद्या और अष्ट सिद्धियां प्रदान करने वाला है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सभी देवी-देवताओं को भी मां सिद्धिदात्री से ही सिद्धियों की प्राप्ति हुई थी। मां अपने इस स्वरूप में कमल पर विराजमान हैं। उनके चार हाथ हैं। एक हाथ में वे कमल का पुष्प और दूसरे हाथ में चक्र धारण किए हुए हैं। तीसरे हाथ में शंख और चौथे में वे गदा लिए हुए हैं। इनके नेत्रों में करुणा नज़र आ रही है। मां प्रसन्न मुद्रा में हैं।
मां सिद्धिदात्री की पूजा का महत्व
मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से भक्त को अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व आदि समस्त सिद्धियों और नव निधियों की प्राप्ति होती है। इनकी आराधना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। देवी की कृपा से साधक विशुद्ध ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त करता है। सच्चे मन से इनकी उपासना कर साधक सभी सिद्धियां प्राप्त कर सकता है। मां की पूजा करने से आपके मन से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है जिससे कि आप अपने करियर में तरक्की करते हैं। मां की पूजा करने से आपके सभी कार्य सिद्ध होते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार मां सिद्धिदात्री का केतु ग्रह पर नियंत्रण होता है इसलिए मां की आराधना करने से केतु ग्रह से जुड़े सभी दोष दूर होते हैं।
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ऐसे करें अंतिम दिन दिन पूजा
इस दिन माता सिद्धिदात्री को नवाह्न प्रसाद, नवरस युक्त भोजन, नौ प्रकार के पुष्प और नौ प्रकार के ही फल अर्पित करने चाहिए। सबसे पहले कलश की पूजा कर उसमें स्थापित सभी देवी-देवताओँ का ध्यान करना चाहिए। इसके पश्चात्त माता के मंत्रों का जाप और उनकी पूजा करनी चाहिए। मां को फूलों की माला, लाल चुनरी और श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करनी चाहिए। मां को खीर, धान का लावा और नारियल का भोग लगाकर उनकी आरती उतारनी चाहिए। नवरात्र की नवमी तिथि को चंडी हवन करना शुभ होता है। इसके अलावा दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करना चाहिए।
कन्या पूजन का है विशेष महत्व
मां की पूजा के बाद छोटी बच्चियों और कुंवारी कन्याओं को भोजन कराना चाहिए। भोजन से पहले कन्याओँ के पैर धोकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। इसके बाद उन्हें हलवा, पूड़ी, सब्ज़ी, फल का भोजन कराकर वस्त्र, आभूषण देना चाहिए और उनके चरण स्पर्श कर उन्हें विदा करना चाहिए। जो भी भक्त नवरात्र में विधिपूर्वक व्रत रखकर अंतिम दिन कन्या पूजन करके व्रत का समापन करता है, मां उससे बहुत प्रसन्न होती हैं। उन्हें इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कन्या पूजन के लिए नौ छोटी कन्याओं और एक बालक को बैठाना चाहिए। कन्याएं मां के नौ रूपों का प्रतीक होती हैं जबकि बालक को हनुमान मानकर पूजा जाता है।
मां सिद्धिदात्री का पौराणिक कथा
देवी सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सभी सिद्धिय़ां प्रदान करने वाली हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार जो भी देव की सच्चे मन से उपासना करता है उसके लिए सृष्टि में कुछ भी अगम्य नहीं रह जाता। वह किसी पर भी विजय प्राप्त करने में सक्षम हो जाता है।
मार्कण्य पुराण में सिद्धियों की संख्या आठ बताई गई है। ये आठ सिद्धियां हैं- अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व।
ब्रह्मवैवर्तपुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है। इनके नाम इस प्रकार हैं-
- अणिमा 2. लघिमा 3. प्राप्ति 4. प्राकाम्य 5. महिमा 6. ईशित्व, वाशित्व 7. सर्वकामावसायिता 8. सर्वज्ञत्व 9. दूरश्रवण 10. परकायप्रवेशन 11. वाक्सिद्धि 12. कल्पवृक्षत्व 13. सृष्टि 14. संहारकरणसामर्थ्य 15. अमरत्व 16. सर्वन्यायकत्व 17. भावना 18. सिद्धि।
मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण में दी गई कथा के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी कृपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में वे 'अर्द्धनारीश्वर' नाम से प्रसिद्ध हुए।
मंत्र
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥
प्रार्थना (श्लोक)
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थ: हे मां! सर्वत्र विराजमान और मां सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है या मैं आपको बारंबाकर प्रणाम करता/करती हूं। हे मां, मुझे अपनी कृपा पात्र बनाओ।
ध्यान
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
कमलस्थिताम् चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा निर्वाणचक्र स्थिताम् नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शङ्ख, चक्र, गदा, पद्मधरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटिं निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ
कञ्चनाभा शङ्खचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्।
नलिस्थिताम् नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोऽस्तुते॥
परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता, विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भवसागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनीं।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
मां सिद्धिदात्री की आरती
- जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता। तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥
- तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि। तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥
- कठिन काम सिद्ध करती हो तुम। जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥
- तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है। तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है॥
- रविवार को तेरा सुमिरन करे जो। तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥
- तू सब काज उसके करती है पूरे। कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥
- तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया। रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥
- सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली। जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥
- हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा। महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥
- मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता। भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥
मां सिद्धिदात्री का पसंदीदा फूल
मां सिद्धिदात्री को रात की रानी (Night blooming jasmine) और कमल पुष्प प्रिय होते हैं इसलिए उनकी आराधना करते समय उन्हें ये फूल ज़रूर अर्पित करें।
नवमी का शुभ रंग
चैत्र नवरात्र की नवमी तिथि को गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करना शुभ होगा। गुलाबी रंग प्रेम, लगाव, सामंस्य और सौभाग्य का प्रतीक है। खिले हुए गुलाब की तरह यह रंग सहज ही सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेता है।
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