गुरु से क्या सीख मिलती है

Shweta Obrai | 03-Jan-2015

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आज के वातावरण में गुरु की सार्थकता और महत्ता को प्रकाशित करता हुआ यह लेख।

गुरु क्या है?

कभी विचार किया है? कि हम जिस उद्देश्य के लिए जन्म जन्मांतर से गुरू शिष्य परंपरा का निर्वाहन करते आ रहे हैं, उसकी आज के भौतिकवादी युग और हमारे जीवन में प्रासंगिकता क्या है? कुछ इसी तरह की जिज्ञासा को शांत करने के उद्देश्य से हम इस लेख के माध्यम से प्रकाश डालने की कोशिश करते हैं।

सर्वप्रथम हम जानने की कोशिश करेंगे कि गुरु क्या है?

दो अक्षर का एक ऐसा शब्द "गुरु" जो सदैव हमारे जीवन के मार्ग को सदाचार शिष्टता और जीवनोपयोगी ज्ञान से परिपूर्ण कर नैतिकता और सदाचरण के मार्ग पर प्रशस्त करने के लिये सीख दे, सच्चा "गुरु" वही कहलाता है।

  • गुरु वह है जो ज्ञान दे,
  • गुरु वह भी है जो अहंकार ना पनपने दे,
  • गुरु वह भी है जो निस्वार्थ भाव से कर्म करने की सीख दे।
  • भटके हुए निरीह प्राणी को सदबुद्धि और सार्थक राह दिखाने हेतु प्रेरित करें सच्चा गुरु वही कहलाता है।

लेकिन इसके उलट हम सभी ने कभी इस बात पर विचार करने की कोशिश की है, कि जिस गुरु को बनाने में मैने अपने जीवन का अमूल्य समय व्यतीत कर दिया वह कहां है?

"जिन खोजा तिन पाईया" अर्थात हमें जिस प्रकृति ने जीवन दिया और जीवन जीने के साधन उपलब्ध कराये क्या हम उस प्रकृति को ही गुरु नही बना सकते।

यदि थोड़ी देर के लिए हम अपनी अचेतन आँखो में चेतना रूपी प्रकाश प्रज्वलित करके देखें तो इस प्रकृति ने चाहें खनिज संपदा से, वनस्पतियों से या फिर पशु पक्षियों के गुणों से एक ऐसा सुंदर वातावरण उपलब्ध कराया है जिसको जीवन में उतारने पर गुरु की भूमिका की आवश्यकता ही प्रतीत नही होती है। अर्थात प्रकृति ही हमारी गुरू है जो हमें सबकुछ सिखाती है।सिर्फ सीखने की ही जरूरत है।

कुछ इसी तरह की सोच से वशीभूत हमारे एक गुरू जिन्हें हम "दत्तात्रेय गुरु" के विषय में बताना चाहते हैं। जिन्होंने इसी प्रकृति में अलग अलग माध्यमों से कुछ ना कुछ सीख लेने की कोशिश की है।

प्रस्तुत है गुरु दत्तात्रेय के चौबीस गुरूओं का अदभुत चित्रण।

जीवन में गुरु की अपनी एक विशेष जगह है। कहते है बिना गुरु के ज्ञान प्राप्त नहीं होता। सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के लिए आपको किसी न किसी को गुरु बनाना पड़ता है चाहे फिर वो एकलव्य की तरह मिट्टी की मूरत ही क्यों ना हों। गुरु की इसी महत्ता को प्रमाणित करते है, "भगवान दत्तात्रेय" जो कि स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे। फिर भी उन्होंने अपने जीवन में 24 गुरु बनाए जिसमे कीट, पक्षी और जानवर तक शामिल है। उन्होंने जिससे भी कुछ सीखा उसे अपना गुरु माना।

कौन है भगवान दत्तात्रेय?

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भगवान दत्तात्रेय ब्रह्माजी के मानस पुत्र ऋषि अत्रि के पुत्र हैं। इनकी माता का नाम अनुसुइया था। कई ग्रंथों में यह बताया गया है कि ऋषि अत्रि और अनुसुइया के तीन पुत्र हुए। ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा, शिवजी के अंश से दुर्वासा ऋषि, भगवान विष्णु के अंश दत्तात्रेय का जन्म हुआ। कहीं-कहीं यह उल्लेख भी मिलता है कि, भगवान दत्तात्रेय ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव के सम्मिलित अवतार हैं।

☆भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु☆

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☆पृथ्वी-

सहनशीलता व परोपकार की भावना को हम इस धरा से सीख सकते हैं। पृथ्वी पर लोग कई प्रकार के आघात करते हैं, कई प्रकार के उत्पात होते हैं, कई प्रकार खनन कार्य होते हैं, लेकिन पृथ्वी हर आघात को परोपकारी की भावना से सहन करती है।

☆पिंगला वेश्या-

पिंगला नाम की वेश्या से दत्तात्रेय ने सबक लिया कि केवल पैसों के लिए जीवन जीना नहीं चाहिए। वह वेश्या सिर्फ पैसा पाने के लिए किसी भी पुरुष की ओर इसी नजर से देखती थी वह धनी है और उससे धन प्राप्त होगा। धन की कामना में वह सो नहीं पाती थी। जब एक दिन पिंगला वेश्या के मन में वैराग्य जागा तब उसे समझ आया कि पैसों में नही बल्कि परमात्मा के ध्यान में ही असली सुख है, तब उसे सुख की नींद आई।

☆कबूतर-

कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे बच्चों को देखकर खुद भी जाल में जा फंसता है। इनसे यह सबक लिया जा सकता है कि किसी से बहुत ज्यादा स्नेह दु:ख की वजह होता है।

☆सूर्य-

सूर्य से दत्तात्रेय ने सीखा कि जिस तरह एक ही होने पर भी सूर्य अलग-अलग माध्यमों से अलग-अलग दिखाई देता है। आत्मा भी एक ही है, लेकिन कई रूपों में दिखाई देती है।

☆वायु-

जिस प्रकार अच्छी या बुरी जगह पर जाने के बाद वायु का मूल रूप स्वच्छता ही है। उसी तरह अच्छे या बुरे लोगों के साथ रहने पर भी हमें अपनी अच्छाइयों को छोड़ना नही चाहिए।

☆हिरण-

हिरण उछल-कूद, संगीत, मौज-मस्ती में इतना खो जाता है कि उसे अपने आसपास शेर या अन्य किसी हिंसक जानवर के होने का आभास ही नही होता है और वह मारा जाता है। इससे यह सीखा जा सकता है कि हमें कभी भी मौज-मस्ती में इतना लापरवाह नही होना चाहिए।

☆समुद्र-

जीवन के उतार-चढ़ाव में भी खुश और सदैव समुद्र की भांति गतिशील रहना चाहिए।

☆पतंगा-

जिस प्रकार पतंगा आग की ओर आकर्षित होकर जल जाता है। उसी प्रकार रूप-रंग के आकर्षण और झूठे मोह में उलझना नहीं चाहिए।

☆हाथी-

हाथी हथिनी के संपर्क में आते ही उसके प्रति आसक्त हो जाता है। अत: हाथी से सीखा जा सकता है कि संन्यासी और तपस्वी पुरुष को स्त्री से बहुत दूर रहना चाहिए।

☆आकाश-

दत्तात्रेय ने आकाश से सीखा कि हर देश, काल, परिस्थिति में लगाव से दूर रहना चाहिए।

☆जल-

दत्तात्रेय ने जल से सीखा कि हमें सदैव पवित्र रहना चाहिए।

☆मधुमक्खी -

मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करती है और एक दिन छत्ते से शहद निकालने वाला सारा शहद ले जाता है। इस बात से ये सीखा जा सकता है कि आवश्यकता से अधिक चीजों को एकत्र करके नही रखना चाहिए।

☆मछली-

हमें स्वाद का लोभी नही होना चाहिए। मछली किसी कांटे में फंसे मांस के टुकड़े को खाने के लिए चली जाती है और अंत में प्राण गंवा देती है। हमें स्वाद को इतना अधिक महत्व नही देना चाहिए, ऐसा ही भोजन करें जो सेहत के लिए अच्छा हो।

☆कुरर पक्षी-

कुरर पक्षी से सीखना चाहिए कि चीजों को पास में रखने की सोच छोड़ देना चाहिए। कुरर पक्षी मांस के टुकड़े को चोंच में दबाए रहता है, लेकिन उसे खाता है। जब दूसरे बलवान पक्षी उस मांस के टुकड़े को देखते हैं तो वे कुरर से उसे छीन लेते हैं। मांस का टुकड़ा छोड़ने के बाद ही कुरर को शांति मिलती है।

☆बालक-

छोटे बच्चे से सीखा कि हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न रहना चाहिए।

☆आग-

आग से दत्तात्रेय ने सीखा कि कैसे भी हालात हों, हमें उन हालातों में ढल जाना चाहिए। जिस प्रकार आग अलग-अलग लकड़ियों के बीच रहने के बाद भी एक जैसी ही नजर आती है।

☆चन्द्रमा-

आत्मा लाभ-हानि से परे है। वैसे ही जैसे घटने-बढऩे से भी चंद्रमा की चमक और शीतलता बदलती नही है, हमेशा एक-जैसी रहती है। आत्मा भी किसी भी प्रकार के लाभ-हानि से बदलती नही है।

☆कुंवारी कन्या-

कुंवारी कन्या से सीखना चाहिए कि अकेले रहकर भी काम करते रहना चाहिए और आगे बढ़ते रहना चाहिए। दत्तात्रेय ने एक कुंवारी कन्या देखी जो धान कूट रही थी। धान कूटते समय उस कन्या की चूड़ियां आवाज कर रही थी। बाहर मेहमान बैठे थे, जिन्हें चूड़ियों की आवाज से परेशानी हो रही थी। तब उस कन्या ने चूड़ियों की आवाज बंद करने के लिए चूड़ियां ही तोड़ दी। दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी ही रहने दी। इसके बाद उस कन्या ने बिना शोर किए धान कूट लिया। अत: हमें ही एक चूड़ी की भांति अकेले ही रहना चाहिए।

☆शरकृत या तीर बनाने वाला-

अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करना चाहिए। दत्तात्रेय ने एक तीर बनाने वाला देखा जो तीर बनाने में इतना मग्न था कि उसके पास से राजा की सवारी निकल गई, पर उसका ध्यान भंग नहीं हुआ।

☆सांप-

दत्तात्रेय ने सांप से सीखा कि किसी भी संन्यासी को अकेले ही जीवन व्यतीत करना चाहिए। साथ ही, कभी भी एक स्थान पर रुककर नहीं रहना चाहिए। जगह-जगह ज्ञान बांटते रहना चाहिए।

☆मकड़ी-

मकड़ी से दत्तात्रेय ने सीखा कि भगवान भी माया जाल रचते हैं और उसे मिटा देते हैं। जिस प्रकार मकड़ी स्वयं जाल बनाती है, उसमें विचरण करती है और अंत में पूरे जाल को खुद ही निगल लेती है, ठीक इसी प्रकार भगवान भी माया से सृष्टि की रचना करते हैं और अंत में उसे समेट लेते हैं।

☆भृंगी कीड़ा-

इस कीड़े से दत्तात्रेय ने सीखा कि अच्छी हो या बुरी, जहां जैसी सोच में मन लगाएंगे मन वैसा ही हो जाता है।

☆भौंरा -

भौरें से दत्तात्रेय ने सीखा कि जहां भी सार्थक बात सीखने को मिले उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। जिस प्रकार भौरें अलग-अलग फूलों से पराग ले लेती है।

☆अजगर-

अजगर से सीखा कि हमें जीवन में संतोषी बनना चाहिए। जो मिल जाए, उसे ही खुशी-खुशी स्वीकार कर लेना चाहिए।

एक छोटा सा प्रयास गुरु दत्तात्रेय की तरह सोच को बड़ा करे।

अंततः मुख्य बात यही निकलकर आती है कि गुरु दत्तात्रेय की भांति यदि हम अपने जीवन में ऐसी ही छोटी छोटी अवधारणाओं के माध्यम से सीखें तो अपने साथ साथ इस जगत का भी कल्याण कर सकते हैं।