संतान प्राप्ति में हो रही है बाधा, तो करें ये अचूक उपाय-
Indian Astrology | 23-Mar-2020
Views: 25779पति-पत्नी की यह प्रबल कामना होती है कि उनके एक योग्य संतान उत्पन्न हो जिससे उनका वंश आगे बढे और वह उम्र के आखरी पड़ाव में उनका सहारा बने, अच्छा भाग्य समान रूप से सबको प्राप्त नहीं होता कुछ लोगो को सरलता से संतान की प्राप्ति या संतान सुख मिल जाता है तो कुछ लोगों को बाधाओं के बाद या विलम्ब से संतान प्राप्ति हो पाती है, ‘संतान’ यह एक ऐसा शब्द है जिसका महत्व माता-पिता से अधिक न कोई समझ सकता है और न ही इस एहसास को समझा सकता है। संतान पाने की खुशी व्यक्त कर पाना उस माता-पिता के लिए भी मुश्किल है जो हाल ही में इस खूबसूरत पल के हकदार बने हैं, कहते हैं संतान देना और न देना, दोनों ही ईश्वर के हाथ है।
भगवान की इच्छा हो तभी संतान सुख प्राप्त होता है। किंतु संतान होगी या नहीं और संतान में क्या मिलेगा, इसके बारे में जाना जरूर जा सकता है। इस विषय में ज्योतिष शास्त्र हमारी मदद करता है। दरअसल जन्म के समय के हिसाब से ग्रहों और नक्षत्रों की गणना करने के बाद जो जन्मकुंडली तैयार की जाती है, उसमें व्यक्ति विशेष से जुड़ी सारी जानकारी होती है। उसका स्वभाव, उसका जीवन कैसा रहेगा और उसे उसका भविष्य क्या दे सकता है, इसकी जानकारी हमें कुंडली के माध्यम से प्राप्त होती है। बस जरूरत है तो एक अच्छे ज्योतिषी की जो सही गणना कर सटीक जानकारी प्रदान कर सके। यदि जन्म कुण्डली में ‘संतान योग’ हो, तभी संतान की प्राप्ति होती है। लेकिन संतान के रूप में पुत्र होगा या पुत्री मिलेगी, इसकी जानकारी भी कुण्डली में उस समय पर मौजूद ग्रह-नक्षत्र बता सकते हैं। वास्तव में इसके पीछे हमारी जन्मकुंडली में बनी ग्रहस्थिति की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, आज के आधुनिक काल में लोग पुत्र और पुत्री में फर्क नहीं करते और यह सही भी है। हमारे शास्त्रों में भी पुत्र एवं पुत्री दोनों को समान दर्जा दिया गया है। पुत्र के संदर्भ में यह कहा जाता है कि जिस व्यक्ति को पुत्र होता है, उसके पितृ उससे प्रसन्न रहते हैं और इससे वंश परम्परा भी आगे बढ़ती है| बृहत्पराशर होराशास्त्र में कहा गया है–
“अपुत्रस्य गति नास्ति शास्त्रेषु श्रुयते मुने” अर्थात् पुत्रहीन व्यक्ति को सद्गति नहीं मिलती। प्रत्येक व्यक्ति अपने पितृगणों को पुत्र ऋण चुकाए, यह आवश्यक माना गया है। दूसरी ओर पुत्री मां लक्ष्मी का रूप मानी गई है। जिस घर में कन्या का जन्म होता है, उस घर में माँ लक्ष्मी का वास होता है, वहां खुशहाली सदा बनी रहती है, और ऐसा घर सौभाग्य एवं धन से भरा हुआ रहता है। किंतु जिस घर में पुत्री के आने पर रोक लगा दी जाए, आने के बाद उसे अपनाया ना जाए या उसका आना अच्छा न समझा जाये, ऐसे घर में मां लक्ष्मी कभी वास नहीं करती। ऐसे परिवार का पतन होना निश्चित होता है।
जन्म कुंडली से संतान बाधा विचार -
- ज्योतिष के प्राचीन फलित ग्रंथों में संतान सुख के विषय पर बड़ी गहनता से विचार किया गया है| भाग्य में संतान सुख है या नहीं, पुत्र होगा या पुत्री, संतान कैसी निकलेगी, संतान सुख कब मिलेगा और संतान सुख प्राप्ति में क्या बाधाएं हैं और उनका क्या उपचार है, इन सभी प्रश्नों का उत्तर पति और पत्नी की जन्म कुंडली के विस्तृत गहन अध्ययन व विश्लेषण से प्राप्त हो सकता है|
- संतति सुख के लिए कुंडली के पंचम स्थान, पंचमेश, पंचम स्थान पर शुभाशुभ प्रभाव व बृहस्पति का विचार मुख्यत: किया जाता है। ज्योतिष के अनुसार मेष, मिथुन, सिंह, कन्या ये राशियाँ अल्प प्रसव राशियाँ हैं। वृषभ, कर्क, वृश्चिक, धनु, मीन ये बहुप्रसव राशियाँ हैं।
- जब लग्न एवम चंद्रमा से पंचम भाव में निर्बल पाप ग्रह अस्त ,शत्रु, नीच राशि नवांश में स्थित हों ,पंचम भाव पाप कर्तरी योग से पीड़ित हो, पंचमेश और गुरु अस्त, शत्रु, नीच राशि नवांश में लग्न से 6,8 12 वें भाव में स्थित हों, गुरु से पंचम में पाप ग्रह हो, षष्टेश अष्टमेश या द्वादशेश का सम्बन्ध पंचम भाव या उसके स्वामी से होता हो,
- सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में 6,8 12 वें भाव में अस्त, शत्रु, नीच राशि नवांश में स्थित हों तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है| जितने अधिक कुयोग होंगे उतनी ही अधिक कठिनाई संतान प्राप्ति में होगी|
- पांचवें या सातवें स्थान में सूर्य एवं राहू एक साथ हों। पांचवें भाव का स्वामी बारहवें स्थान में व बारहवें स्थान का स्वामी पांचवें भाव में बैठा हो और इनमें से कोई भी पाप ग्रह की पूर्ण दृष्टि में हो।
- पुत्रेश पाप ग्रहों के मध्य हो तथा पुत्र स्थान पर पाप ग्रह हो ,शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो संतान सुख बाधित होता है।
- आठवें स्थान में शुभ ग्रह स्थित हो साथ ही पांचवें तथा ग्यारहवें घर में पापग्रह हों। सप्तम स्थान में मंगल-शनि का योग हो और पांचवें स्थान का स्वामी त्रिक स्थान में बैठा हो।
- पंचम स्थान में मेष या वृश्चिक राशि हो और उसमें राहू की उपस्थिति हो या राहू पर मंगल की दृष्टि हो। शनि यदि पंचम भाव में स्थित हो और चंद्रमा की पूर्ण दृष्टि में हो और पंचम भाव का स्वामी राहू के साथ स्थित हो।
- मंगल दूसरे भाव में, शनि तीसरे भाव में तथा गुरु नवम या पंचम भाव में हो तो पुत्र संतान का अभाव होता है। यदि गुरु-राहू की युति हो। पंचम भाव का स्वामी कमजोर हो एवं लग्न का स्वामी मंगल के साथ स्थित हो अथवा लग्न में राहू हो, गुरु साथ में हो और पांचवें भाव का स्वामी त्रिक स्थान में चला गया हो।
‘‘भूनंदनों नंदनभावयातो जातं च जातं तनयं निहन्ति।
दृष्टे यदा चित्र शिखण्डिजेन भृगो: सुतेन प्रथमोपन्नम्।।’’
- पंचम भाव में केवल मंगल का योग हो तो संतान बार-बार होकर मर जाती है। यदि गुरु या शुक्र की दृष्टि हो तो केवल एक संतति नष्ट होती है और अन्य संतति जीवित रहती है।
- गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पंचम स्थान शुभ बिंदु से रहित हो तो संतानहीनता होती है|
- सप्तमेश निर्बल हो कर पंचम भाव में हो तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है|
- पंचम स्थान में पाप ग्रह हो तो संतति सुख में बाधा आती है।
- पंचमेश यदि 6, 8,12 में हो या 6, 8,12 के स्वामी पंचम में हो तो संतान सुख बाधित होता है।
- गुरु ,लग्नेश ,पंचमेश ,सप्तमेश चारों ही बलहीन हों तो अन्पतत्यता होती है|
- पंचमेश अशुभ नक्षत्र में हो तो संतान प्राप्ति में विलंब होता है।
- पंचम का राहु पहली संतान के लिए अशुभ होता है।
- गुरु ,लग्न व चन्द्र से पांचवें स्थान पर पाप ग्रह हों तो अन्पतत्यता होती है|
- लग्न पर पाप प्रभाव हो तो संतति विलंब से होती है।
- स्त्री की कुंडली में लग्न पंचम, सप्तम, या लाभ में शनि हो तो संतान देर से होती है।
- सूर्य-शनि युति संतान प्राप्ति में विलंब और संतान से मतभेद दिखाती है।
- पंचम स्थान पर पापग्रहों की दृष्टि संतान प्राप्ति में विलंब कराती है।
संतान प्राप्ति के उपाय–
यदि पति व पत्नी, दोनों की कुण्डलियों में पूर्ण संतानहीनता की स्थिति हो तो उन्हें संतान बाधा मुक्ति के लिए निम्न उपाय करने चाहिए। इसका परिणाम हमेशा सुखद रहा है|
संतान गोपाल मंत्र के शुभ मुहूर्त में सवा लाख जप करें, साथ ही बालमुकुंद भगवान जी की पूजन करें। उनको माखन-मिश्री का भोग लगाएं। गणपति का स्मरण करके शुद्ध घी का दीपक प्रज्जवलित करके निम्न मंत्र का जप करें।
‘‘ऊं क्लीं देवकी सूत गोविंद वासुदेव जगतपते देहि मे, तनयं कृष्ण त्वामहम् शरणंगत: क्लीं ऊं।।’’
यदि किसी व्यक्ति को संतान की प्राप्ति नहीं हो रही है तो वह व्यक्ति शुक्ल पक्ष में अभिमंत्रित संतान गोपाल यंत्र को अपने घर में स्थापित करे और लगातार 16 गुरुवार के ब्रत रखकर केले तथा पीपल के वृक्ष की सेवा करें उनमे दूध चीनी मिश्रित जल चढ़ाएं|
नवरात्रि में इस मंत्र से दुर्गा सप्तशती का नवचंडी पाठ का अनुष्ठान करना संतान सुख देने वाला होता है|
‘’सर्वा बाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः।
मनुष्यो मत्प्रसादेन, भविष्यति न शंसयः॥‘’
बाधक ग्रहों की क्रूर व पापी ग्रहों की किरण रश्मियों को पंचम भाव, पंचमेश तथा संतान कारक गुरु से हटाने के लिए रत्नों का विकल्प बेहद प्रभावी रहता है। इस बात को समझने के लिए विशेषज्ञ आचार्य की अनिवार्यता होती है ताकि वह निर्धारित कर सके कि किन ग्रहों के कारण संतान प्राप्ति में बाधा आ रही है तथा किन ग्रहों की किरण रश्मियों को प्रतिकर्षित करने के लिए कैसे रत्नों का प्रयोग किया जाए।
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जिन महिलाओं की संतान गर्भ में ही समाप्त हो जाती है वह मंगलवार के दिन इक्कीस पान के पते लाएं, उन पर सिंदूर से राम लिखें फिर उन्हें हनुमान मंदिर ले जाकर लाल कपड़े में बांध लें, और बहते पानी में प्रवाहित करें, यह करने से आपका काम अवश्य पूर्ण होगा|
ग्यारह प्रदोष के व्रत करें, प्रत्येक प्रदोष को भगवान शंकर का रुद्राभिषेक करने से संतान की प्राप्त होती है|
जिन पति पत्नी के कोई संतान नहीं है वे किसी शुक्ल पक्ष के गुरुवार को एक पीतल की भगवान लड्डू गोपाल की मूर्ति लाएं और रोज उस मूर्ति की उसी प्रकार से सेवा करें जैसे माता-पिता अपनी संतान की सेवा करते हैं, रोज उस मूर्ति को थाली के बीचो बीच रखकर स्नान कराएं, वस्त्र पहनाएं और भोग लगाकर फिर आप भोजन करें। जल्दी ही आपके घर में संतान की प्राप्ति होगी|
महिला में कमी के कारण संतान होने में बाधा उत्पन्न हो रही हो, तो लाल गाय व बछड़े की सेवा करनी चाहिए, लाल या भूरा कुत्ता पालना भी शुभ होता है|
पति-पत्नी गुरुवार के दिन पीले वस्त्र धारण करें और व्रत रखें, इस दिन पीली वस्तुओं का दान करें और पीला भोजन ही करें|
संतान प्राप्ति के लिए महिला गेंहू के आटे की दो मोटी लोई बनाकर उसमें भीगी चने की दाल और थोड़ी सी हल्दी मिलाकर नियमपूर्वक गाय को खिलाएं, शीघ्र ही संतान उत्पत्ति होगी|
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