महामारी और क्वारंटाइन के इस दौर में जानिए स्वास्थ्य का ज्योतिष कनेक्शन

Indian Astrology | 31-Mar-2020

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पूरा विश्व इस वक्त कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रहा है। हर कोई अपने और अपने प्रियजनों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है। ऐसे में हम आपको बता रहे हैं कि आप अपनी सेहत का ख़्याल कैसे रख सकते हैं। वे कौन से रोग हैं जिनसे आपको सावधान रहना चाहिए और उनका निवारण कैसे किया जा सकता है?

भारतीय पारंपरिक चिकित्साशास्र का ज्योतिष से बहुत गहरा संबंध है। कुछ विद्वान मानते हैं कि होम्योपैथी जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति का विकास ज्योतिष के माध्यम से हुआ है। दरअसल, जन्मकुंडली जन्म के समय ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रह नक्षत्रों का मानचित्र होती है जिनका अध्ययन कर बताया जा सकता है कि जातक को उसके जीवन में कौन-कौन से रोग हो सकते हैं! ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रोगों की उत्पत्ति ग्रहों के अशुभ प्रभाव के कारण होती है जिनके निवारण के लिए पूजा, पाठ, मंत्र जाप, विभिन्न प्रकार के यंत्र तथा रत्न धारण करके किया जा सकता है।

ज्योतिष में रोग विचार

कुंडली में ग्रहों की स्थिति पूरे जीवन में होने वाले रोगों और व्यक्ति की सेहत की जानकारी देती है। इसके लिए शास्त्रों में विभिन्न नियम दिए गए हैं जिनमें से कुछ नियम इस प्रकार हैं:

ज्योतिष में रोग विचार इनके आधार पर किया जाता है:

  • जन्म कुंडली में षष्ठ स्थान या भाव
  • ग्रहों की स्थिति
  •  राशियां
  • कारक ग्रह

भावों का विश्लेषण

रोग विचार करते समय कुंडली में निम्न भावों का अध्ययन विशेष तौर पर किया जाता है:

  • प्रथम भाव: इस भाव से व्यक्ति के स्वास्थ्य एवं शारीरिक कष्टों का विचार किया जाता है।
  • द्वितीय भाव: यह भाव आयु का व्ययसूचक है।
  • तृतीय भाव: इस भाव से आयु का विचार किया जाता है।
  • षष्ठ भाव: षष्ठ भाव व्यक्ति के स्वास्थ्य एवं रोग का भाव है। मंगल और बुध इसके कारक ग्रह हैं।
  • सप्तम भाव: सप्तम भाव आयु का व्ययसूचक है।
  • अष्टम भाव: शनि और मंगल इस भाव के कारक ग्रह हैं। इस भाव से आयु एवं मृत्यु के कारक रोग का विचार होता है।
  •  द्वादश भाव: यह भाव रोग और शारीरिक शक्ति की हानि के बारे में बताता है। रोगों के उपचार का विचार भी इसी भाव से किया जाता है।

भाव स्वामी की स्थिति से रोग विचार

  • षष्ठ, अष्टम एवं द्वादश भाव के स्वामी जिस भाव में स्थित होते हैं उससे संबंधित अंग में पीड़ा हो सकती है।
  • किसी भी भाव का स्वामी अगर षष्ठ, अष्टम, या द्वादश भाव में स्थित हो तो उस भाव से संबंधित अंग में पीड़ा हो सकती है।

 

रोगों के कारण

ग्रहों की निम्न स्थितियों के कारण रोग होते हैं:

  • यदि चंद्रमा कमज़ोर हो या चंद्रलग्न में पाप ग्रह बैठे हों।
  • यदि लग्न, चंद्रमा एवं सूर्य तीनों पर पाप ग्रहों की दृष्टि या प्रभाव हो।
  •  यदि पाप ग्रह शुभ ग्रहों की अपेक्षा अधिक बलवान हो।
  • यदि लग्न एवं लग्नेश की स्थिति अशुभ हो।  

जन्म कुंडली के 12 भावों से रोग विचार

जन्म कुंडली के 12 भावों से रोग का विचार किया जाता है। इसके पहले भाव से लेकर बारहवें भाव तक का अध्ययन करके पता किया जाता है कि व्यक्ति को शरीर के किस अंग में पीड़ा हो सकती है। जिस अंग में पीड़ा होती है ज्योतिषी उस अंग से संबंधित भाव का अध्ययन करके उसका समाधान निकालते हैं। आगे हम आपको यही बताने जा रहे हैं कि जन्म कुंडली के किस भाव से कौन से रोग का विचार किया जाता है।

प्रथम भाव

जन्म कुंडली के इस भाव से पता करने का प्रयास किया जाता है कि भविष्य में व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक तौर पर कितना स्वस्थ रहेगा। इस भाव से सिर दर्द, मानसिक रोगों एवं दिमागी कमज़ोरी का विचार किया जाता है।

द्वितीय भाव

जन्म कुंडली के इस भाव को मारक भाव भी कहा जाता है। इस भाव से नेत्र रोग, नाक, कान, मुंह और गले के रोगों और दांतों के रोग का विचार किया जाता है।

तृतीय भाव

तृतीय भाव से श्वास, खांसी, दमा और फेफड़े के रोग, कण्ठ की ख़राबी, गंडमाला (Scrofula) रोग, हाथ के विकार आदि रोगों का विश्लेषण किया जाता है।

चतुर्थ भाव

जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव से छाती, हृदय एवं पसलियों के रोगों का विचार किया जाता है। इस भाव से मानसिक विकारों का भी पता लगाया जाता है।

पंचम भाव

जन्मकुंडली के इस भाव से मन्दाग्नि (कमज़ोर पाचन शक्ति), अरुचि, पित्त रोग, लिवर (Liver), तिल्ली (Spleen) एवं किडनी के रोगों का विचार किया जाता है।

षष्ठ भाव

षष्ठ भाव कमर और नाभि के नीचे के अंगों के बारे में बताता है इसलिए इस भाव से इन अंगों से संबंधित रोगों पर विचार किया जाता है। इस भाव से किडनी और आंतों से संबंधित बीमारियों, अपेन्डिक्स (Appendix), हर्निया आदि का विश्लेषण किया जाता है।

सप्तम भाव

इस भाव से मधुमेह (डायबिटीज), प्रमेह या गोनोरिया, प्रदर (Leukorrhea), उपदंश (Syphilis), पथरी (Stone) और गर्भाशय के रोगों का विचार किया जाता है।

अष्टम भाव

जन्मकुंडली के अष्टम भाव को गुप्त भाव के नाम से भी जाना जाता है। इस भाव से गुप्त रोग एवं जननेन्द्रिय (Reproductive Organs) रोगों का विचार किया जाता है। इस भाव से वीर्य (Sperm) विकार, बवासीर (Piles), भगंदर (Fistula), उपदंश (Syphilis), संसर्गजन्य अथवा संक्रामक रोग (Communicable or Infectious Diseases), मूत्रकृच्छ (रुक-रुक कर पेशाब होने का एक रोग) और वृषण (अंडकोश) से संबंधित रोग हो सकते हैं।

नवम भाव

नवम भाव से स्त्रियों के मासिक धर्म संबंधित रोग देखे जाते हैं। इस भाव से लिवर संबंधी रोग, रक्त विकार, वायु विकार, कूल्हे का दर्द तथा मज्जा (Marrow or Pith) रोगों का विश्लेषण किया जाता है।

दशम भाव

जन्मकुंडली के दशम भाव से गठिया, घुटने का दर्द, कंपवात, चर्म रोग तथा वायु विकारों का विचार किया जाता है।

एकादश भाव

एकादश भाव से पैर में विकार या चोट, पैर की हड्डी टूटना, पिंडलियों में दर्द, शीत विकार तथा रक्त विकार का आंकलन किया जाता है।

द्वादश भाव

कुंडली के इस भाव से एलर्जी, कमज़ोरी, पोलियो, नेत्र विकार, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विचार किया जाता है।

ग्रहों से संबंधित रोग व उपाय

चिकित्सा ज्योतिष में हर ग्रह का संबंध शरीर के विभिन्न अंगों एवं उनमें होने वाले रोगों से होता है। कुंडली में जब संबंधित ग्रह की दशा होती है और गोचर भी प्रतिकूल चल रहा होता है तब व्यक्ति को उस ग्रह से संबंधित शारीरिक समस्याओं से जूझना पड़ता है। तो आइए, आपको बताते हैं कि किस ग्रह से कौन सा रोग होता है और उसका उपाय क्या है?

सूर्य ग्रह से रोग व उपाय

सूर्य को हड्डी का कारक ग्रह माना जाता है। पेट, दाईं आंख, त्वचा, हृदय, सिर, तथा व्यक्ति का शारीरिक गठन इसके अधिकार क्षेत्र में आता है। जब जन्मकुंडली में सूर्य की दशा चलती है तब व्यक्ति को इन्हीं अंगों से संबंधित रोग होते हैं। जब सूर्य जन्मकुंडली में कमज़ोर होता है तभी व्यक्ति को ये बीमारियां होती हैं। सूर्य के अशुभ प्रभाव के कारण व्यक्ति को बुखार, कोढ़, दिमागी परेशानियां व पुरानी बीमारियां हो सकती हैं।

उपाय

  • भगवान राम की आराधना करें।
  • आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
  • सूर्य को अर्घ्य दें और गायत्री मंत्र का जाप करें।
  • तांबा, गेहूं एवं गुड़ का दान करें।

चंद्रमा से रोग व उपाय

चंद्रमा को मुख्य रूप से मन का कारक ग्रह माना गया है। इसके अलावा यह बाईं आंख, छाती, फेफड़े, दिमाग, हृदय, रक्त, भोजन नली, शरीर के तरल पदार्थ, आंतों, गुर्दे (किडनी), लसीका विहिनी का भी कारक माना जाता है। इसके अशुभ प्रभाव से व्यक्ति को अनिद्रा, गर्भाशय के रोग, मंद बुद्धि की समस्या हो सकती है। इसके अलावा दमा, अतिसार, रक्त संबंधी रोग भी हो सकते हैं।

चंद्रमा के कमज़ोर होने पर जल से होने वाले रोगों की संभावना अधिक होती है। इसके कमज़ोर होने पर बहुमूत्र, उल्टी, स्त्रियों में मासिक धर्म संबंधी समस्याएं, अपेन्डिक्स, स्तनीय ग्रंथियों के रोग, कफ़ तथा सर्दी से जुड़े रोग हो सकते हैं।

उपाय

  • प्रत्येक सोमवार को व्रत करें।
  • माता की सेवा करें।
  • शिव की आराधना करें।
  • मोती (Pearl) धारण करें।

मंगल ग्रह से रोग व उपाय

मंगल का रक्त, ऊर्जा, गर्दन, गुप्तांग, लाल रक्त कोशिकाओं, स्त्री अंग तथा शारीरिक शक्ति पर नियंत्रण होता है। कुंडली में मंगल के कमज़ोर होने पर इनसे संबंधित रोग हो सकते हैं। इसके अलावा सिर के रोग, चोट लगना, विषाक्तता या घाव का संबंध भी मंगल से है। आंखों का दु:खना, खुजली होना, कोढ़, उच्च या निम्न रक्तचाप, थकान, कमज़ोरी, स्त्री अंगों के रोग, हड्डी का चटक जाना, फोड़े-फुंसी, कैंसर, ट्यूमर, बवासीर, स्त्रियों में माहवारी विकार, छाले होना, गुदा के रोग, चेचक, भगंदर तथा हर्निया आदि का संबंध भी मंगल ग्रह से ही है। लेकिन ध्यान रहे ये रोग तभी होते हैं जब कुंडली में मंगल अशुभ स्थिति में होता है।

उपाय

  • हनुमान जी को चोला अर्पित करें।
  • हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमानाष्टक या सुंदरकांड का पाठ करें।
  •  ॐ अं अंगारकाय नमः मंत्र का 108 बार नित्य जाप करें।
  • मंगल यंत्र स्थापित या धारण करें।

बुध ग्रह से रोग व उपाय

बुध का छाती, स्नायु तंत्र, त्वचा, नाभि, नाक, गाल ब्लैडर (Gallbladder), नसें, फेफड़े, जीभ, बाजु, चेहरा, बाल आदि पर नियंत्रण होता हैं। बुध यदि कुंडली में पीड़ित हैं तब इन्हीं क्षेत्रो से संबंधित बीमारी होने की संभावना अधिक होती है। इसके अलावा मिर्गी रोग, नाक व गाल ब्लैडर से जुड़े रोग, टाइफाइड होना, पागलपन, लकवा मार जाना, दौरे पड़ना, अल्सर होना, कोलेरा, चक्कर आना आदि रोग होने की संभावना बनती है।

उपाय

  • भगवान गणेश व मां दुर्गा की आराधना करें।
  • अपने हाथ से गाय को हरा चारा या हरी घास खिलाएं।
  • ॐ बुं बुद्धाय नमः मंत्र का नित्य 108 बार जाप करें।
  • पन्ना (Emerald)  रत्न धारण करें।

गुरु ग्रह से रोग व उपाय

बृहस्पति या गुरु के अन्तर्गत जांघे, चर्बी, मस्तिष्क, लिवर, किडनी, फेफड़े, कान, जीभ, स्पलीन (Spleen) आदि अंग आते हैं। कुंडली में गुरु के पीड़ित होने पर इन्हीं से संबंधित रोग होने की संभावना बनती है। कानों के रोग, बहुमूत्र, जीभ लड़खड़ाना, हकलाना, स्मरणशक्ति कमजोर हो जाना, पेनक्रियाज (Pancreas) से जुड़े रोग, स्प्लीन व जलोदर के रोग, पीलिया, टयूमर, मूत्र में सफेद पदार्थ का आना, रक्त विषाक्त होना, फोड़ा, अजीर्ण व अपच होना आदि रोग हो सकते हैं। इसके अलावा डायबिटिज होने में भी गुरु ग्रह की भूमिका होती है।

उपाय

  • माथे पर केसर का तिलक लगाएं।
  • कलाई में पीला रेशमी धागा बांधे।  
  • पुखराज (Pukhraj) रत्न धारण करें।
  • ॐ बृं बृहस्पतये नमः मंत्र का नित्य 108 बार जाप करें।  

शुक्र ग्रह से रोग व उपाय

शुक्र के अंतर्गत चेहरा, आंखों की रोशनी, गुप्तांग, मूत्र, वीर्य, शरीर की चमक व आभा, शरीर व ग्रंथियों में जल होना, ठोढ़ी, गला, किडनी आदि आते हैं। शुक्र के पीड़ित होने व इसकी दशा/अन्तर्दशा आने पर इनसे संबंधित रोग हो सकते हैं। शुक्र के निर्बल होने पर यौन रोग, गले की बीमारियाँ, शरीर की चमक कम होना, नपुंसकता, बुखार. ग्रंथियों में रोग होना, सुजाक रोग, उपदंश, गठिया, रक्त की कमी होना आदि रोग हो सकते हैं।

उपाय

  • मां लक्ष्मी की आराधना करें।
  • गरीब बच्चों व विद्यार्थियों में अध्ययन सामग्री वितरित करें।
  • गरीब व बेसहारा लोगों की मदद करें।
  • ॐ शुं शुक्राय नमः मंत्र का नित्य 108 बार जाप करें।  

शनि ग्रह से रोग व उपाय

शनि के अंतर्गत टांगे, जोड़ो की हड्डियाँ, मांस पेशियां, दांत, त्वचा व बाल, कान, घुटने आदि आते हैं। शनि के अशुभ होने पर इनसे संबंधित रोग हो सकते हैं। शारीरिक कमज़ोरी, मांस पेशियों का कमजोर होना, पेट दर्द, अंगों का घायल होना, त्वचा व पैरों के रोग, जोड़ो का दर्द, नज़रें कमज़ोर होना, बाल रुखे होना, मानसिक तनाव, लकवा मार जाना, बहरापन आदि रोग शनि के पीड़ित होने पर हो सकते हैं।

उपाय

  • हनुमान जी को चोला अर्पित करें।
  • हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ करें।
  • लोहा, कोयला, काली उड़द, तिल, जौ, काले वस्त्र, चमड़ा, काला सरसों आदि दान दें।
  • शनि यंत्र स्थापित या धारण करें।

राहु से रोग व उपाय

राहु के बुरे प्रभाव से पैरों से संबंधित रोग, सांस लेने में तकलीफ, फेफड़े की परेशानियां, अल्सर, कोढ, फोड़ा हो सकता है। इसके अलावा मोतियाबिन्द, हिचकी, हकलाना, तिल्ली (Spleen) बढ़ना, विषाक्तता, दर्द होना, अण्डवृद्धि आदि रोग भी हो सकते हैं। राहु का संबंध कैंसर से भी है।

उपाय

  • गोमेद रत्न धारण करें।
  • शिव व हनुमान की आराधना करें।
  • सुंदरकांड का पाठ करें।
  • ॐ रं राहवे नमः मंत्र का नित्य 108 बार जाप करें।

केतु से रोग व उपाय

केतु के अधिकार क्षेत्र में उदर व पंजे आते हैं। इसके अशुभ प्रभाव से फेफड़ों से संबंधित रोग, बुखार, आंतों में कीड़े हो सकते हैं। वाणी दोष, कानों में दोष, आँखों का दर्द, पेट दर्द, फोड़े, शारीरिक कमजोरी, मस्तिष्क के रोग, वहम होना, निम्न रक्तचाप आदि केतु की वजह से होने वाले रोग होते हैं। केतु के कारण कुछ रोग ऐसे भी होते हैं जिनके कारणों का पता करना बेहद मुश्किल होता है।

उपाय

  • दुर्गा, शिव व हनुमान की आराधना करें।
  •  हनुमान मंदिर या किसी यज्ञ स्थान पर तिल व जौ का दान करें।
  • ॐ कें केतवे नमः मंत्र का नित्य 108 बार जाप करें।

इन उपायों के अलावा आप नवग्रह शांति पूजा करवा सकते हैं। इस पूजा को कराने से सभी ग्रह दोष दूर हो जाते हैं जिससे ग्रहों का आपके स्वास्थ्य तथा जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन ज्योतिष का हर उपाय कुछ विशेष नियमों के तहत किया जाता है। व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की स्थिति देखकर ही इसका आंकलन किया जा सकता है कि कौन सा उपाय कारगर होगा और कौन सा नहीं! इसलिए किसी भी उपाय को प्रयोग में लाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी से सलाह अवश्य लें। इसके लिए आप हमारी सेवा Talk to Astrologers का प्रयोग कर सकते हैं। इसके ज़रिए आप देश के जाने माने ज्योतिष विशेषज्ञों से अपने सवाल कर अपनी किसी भी समस्या का उचित समाधान प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य संबंधी विस्तृत जानकारी के लिए आप अपनी स्वास्थ्य रिपोर्ट (Health Report) भी प्राप्त कर सकते हैं।