ज्योतिष और रोग विचार व मुक्ति के अचूक उपाय-
Indian Astrology | 21-Mar-2020
Views: 15766प्राचीन काल से ही ज्योतिष के द्वारा रोग को जानने की विद्या हमारे देश में प्रचलित है। कुंडली में ग्रहों की स्थिति पूरे जीवन में होने वाले रोगों की जानकारी देती हैं। जिस घर में जब कोई बीमार हो जाता है तो उस रोगी के साथ-साथ उस घर के सभी व्यक्ति मानसिक रूप से अशांति का अनुभव करने लगते है, प्राचीन समय से ज्योतिष शास्त्र रोगो का निदान करने में महत्पूर्ण भूमिका निभाता आया है, ज्योतिष के माध्यम से रोग की प्रकृति, उसका प्रभाव तथा उसके कारणों का विश्लेषण किया जा सकता है। ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के माध्यम से रोगो का निदान किया जा सकता है, ज्योतिष शास्त्र में , बारह राशियां नौ ग्रह और सत्ताईस नक्षत्रों के माध्यम से रोगों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है, कालपुरुष के विभिन्न अंगों पर राशियों का आधिपत्य होता है जिसके आधार पर हम किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं। जन्म कुंडली में स्थित प्रत्येक राशि तथा ग्रह शरीर के किसी न किसी अंग का प्रतिनिधित्व करता है, जिस ग्रह का जिस राशि पर दूषित प्रभाव होता है उससे संबंधित अंग पर रोग के प्रभाव का पता लगाया जा सकता है। इस संबंध में रोग की अवधि में किस ग्रह की महादशा चल रही है, ग्रह कुंडली में कौन से भाव में स्थित या दृष्ट है, ग्रह पापी है या शुभ है इन सब बातों से रोग की जानकारी प्राप्त होती है। जीवन में होने वाले रोगों को जानने के लिए ज्योतिषीय विश्लेषण के लिए हमारे शास्त्रों मे कई सूत्र दिए गए हैं।
ज्योतिष में रोग विचार-
कुंडली के प्रथम भाव से शारीरिक कष्टों एवं स्वास्थ्य का विचार होता है, और द्वितीय भाव व्यक्ति के खान-पान का सूचक है। तृतीय भाव से व्यक्ति के प्रारंभिक रोगों का विचार किया जाता है, और कुंडली के षष्ठ भाव से व्यक्ति के स्वास्थ्य का, रोग उत्पत्ति का विचार किया जाता है। षष्ठ भाव का कारक ग्रह मंगल, शनि हैं। अष्टम भाव का कारक ग्रह शनि है। इस भाव से आयु, दुर्घटना, मृत्यु और ऑपरेशन आदि का विचार किया जाता है। और भावत भावं सिद्धांत के अनुसार छठा भाव रोग का है, और छठे से छठा ग्यारहवां भाव होने के कारण इससे भी रोग का ही विचार किया जाता है| तथा रोग का मूल कारक शनि ग्रह को माना जाता है, रोग को समझने के लिए जन्मकुंडली में इन भावों, और रोग कारक शनि की स्थिति व इस भाव पर पड़ने वाले ग्रहों की स्थिति को समझना अति आवश्यक है| षष्ठ, अष्टम एवं द्वादश भाव के स्वामी जिस भाव में होते हैं उससे सम्बंधित अंग में पीड़ा होती है। किसी भी भाव का स्वामी ६, ८ या १२वें में स्थित हो तो उस भाव से सम्बंधित अंगों में पीड़ा होती है।
रोगों के कारण-
- यदि लग्न एवं लग्नेश की स्थिति अशुभ हो।
- यदि चंद्रमा का क्षीर्ण अथवा निर्बल हो या चन्द्रलग्न में पाप ग्रह बैठे हों ।
- यदि लग्न, चन्द्रमा एवं सूर्य तीनों पर ही पाप अथवा अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो।
- यदि पाप ग्रह शुभ ग्रहों की अपेक्षा अधिक बलवान हों।
रोग कब ठीक होगा:-
रोगकारक ग्रह की दशा अन्तर्दशा की समाप्ति के बाद रोग ठीक हो सकता है। लग्नेश, योगकारक ग्रह की दशा अन्तर्दशा प्रत्यन्तर्दशा प्रारम्भ हो जाए, तो रोग से छुटकारा प्राप्त हो सकता हैं। शनि सम्बन्धी रोग से जातक लम्बे समय तक पीड़ित रहता है। यदि राहु किसी रोग से सम्बंधित है, तो बहुत समय तक उस रोग का पता नही हो पाता है। ऐसे में रोग अधिक अवधि तक चलता है।
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रोग मुक्ति के उपाय-
- प्रत्येक पूर्णिमा को शिव मंदिर जाकर भगवान शिव से अपने परिवार को सुखी रखने की प्रार्थना करें, और शिवलिंग पर विलपत्र अर्पित करें|
- पीपल के वृक्ष की सेवा करने से रोगो से मुक्ति मिलती है, रविवार को छोड़ कर अन्य सभी दिन स्नानादि कार्यो से निवृत होकर नियमित रूप से पीपल के वृक्ष पर मीठा जल अर्पित करें, इसके बाद रोग की निवृति के लिए प्रार्थना करें, शीघ्र ही लाभ होगा,
- लम्बे समय से रोग से ग्रस्त लोगों को हर माह कम से कम एक बार अपने सामर्थ्यानुसार किसी अस्पताल में जाकर दवा और फलों का वितरण करना चाहिए, इससे रोगी और उसके पारिवारिक सदस्य निरोग रहेंगे|
- काली हल्दी को मंगलवार और शनिवार के दिन या फिर अमावास्या के दिन बीमार व्यक्ति के सिर के ऊपर से सात बार वार कर इसे बहते जल में प्रवाहित करें, शीघ्र ही रोग से मुक्ति मिलेगी,
- प्रत्येक पूर्णिमा को शिवालय जाकर भोलेनाथ से अपनी आरोग्यता के लिए प्रार्थना करें, उसके बाद फल और मिठाई को गरीबों में बाँट दें,
- अगर रोग गंभीर और लम्बा हो तो रोगी के वजन के बराबर यह सभी खाद्य सामग्री गेहूं घी, तेल सहित तौलकर ब्रहाम्ण या किसी गरीब गृहस्थ को दें। तुलादान करने से आसाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है।
- रात्रि के समय शयन कक्ष में कपूर जलाने से बीमारियां, दुस्वप्न नहीं आते, पितृ दोष का नाश होता है एंव घर में शांति बनी रहती हैं।
- जटा वाले सात नारियल लेकर शुक्ल पक्ष के सोमवार के दिन ॐ नमः शिवाय मन्त्र का जाप करते हुए नदी में प्रवाहित करें, ऐसा करने से रोग से निवृति मिलती है,
- पूर्णिमा के दिन खीर बनाएं, चन्द्रमा और अपने पितरों को भोग लगाएं, कुछ खीर काले कुत्तों को दें। वर्ष भर पूर्णिमा पर ऐसा करते रहने से बीमारी तो दूर होती ही है साथ ही गृह क्लेश, और व्यापार हानि से भी मुक्ति मिलती हैं,
- तालाब, कूप या समुद्र में जहां मछलियाँ हो, उनको शुक्रवार से शुक्रवार तक आटे की गोलियां, शक्कर मिला कर मछलियों को डालें, रोगी ठीक होता चला जायेगा,
- एक रुपये का सिक्का रात को सिरहाने में रख कर सोएं और सुबह उठकर उसे किसी सुनसान जगह फेंक दें, रोग से मुक्ति मिल जाएगी।
- यदि किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य लगातार खराब रह रहा हो और कोई भी दवा असर न कर रही हो तो आक की जड़ लेकर उसे किसी कपड़े में कस कर बांध दें, फिर उस कपडे को रोगी के कान से बांध दें, बुखार उतर जायगा|
- यदि घर के छोटे बच्चे अधिक बीमार रहते हों, तो मोर पंख को पूरा जलाकर उसकी राख बना लें और उस राख से बच्चे को नियमित रूप से तिलक लगाएं तथा थोड़ी-सी राख चटा दें।
- यदि पर्याप्त उपचार करने के पश्चात भी रोग-पीड़ा शांत नहीं हो रही हो अथवा बार-बार एक ही रोग प्रकट होकर पीड़ित कर रहा हो तो ऐसे व्यक्ति को अपने वजन के बराबर गेहू का दान रविवार के दिन करना चाहिए। गेहूँ का दान जरूरतमंद एवं अभावग्रस्त व्यक्तियों को ही करना चाहिए।
- लंबे समय से बीमार इंसान के कमरे में उसे दक्षिण दिशा की तरफ सिर रखकर सुलाएं और दवाएं और पानी को भी इसी तरफ रखें। जब भी रोगी को दवा खिलाएं उसका मुख पूर्व की तरफ करके ही खिलाएं।
- कृष्ण पक्ष में चमकीला काला कपडा, उड़द तथा एक रुपये का सिक्का दान करें|
- हनुमान जी का पूजन करें, हनुमान चालीसा का पाठ करें, और प्रत्येक शनिवार को शनिदेव को तेल चढायें, व एक जोडी चप्पल किसी गरीब को दान करें|
- सभी रोगों में पीपल की सेवा से बहुत लाभ प्राप्त होता है, रविवार को छोड़कर नियमित रूप से पीपल के वृक्ष पर प्रात: मीठा जल चड़ाकर उसकी जड़ जो छूकर अपने माथे से लगायें, पुरुष पीपल की 7 परिक्रमा करें, स्त्री ना करें और अपने रोग को दूर करने की प्रार्थना करें अति शीघ्र लाभ मिलेगा|
- अशोक के पेड़ की तीन ताजी पत्तियों को लेकर प्रतिदिन सुबह चबाने से आपकी सेहत ठीक रहेगी और किसी भी तरह की चिंता से परेशानी नहीं होगी।
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