माघ स्नान 2020: जानिए, माघ स्नान की विधि, महत्व और पौराणिक कथा
Indian Astrology | 09-Jan-2020
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माघ हिंदू पंचांग का वह माह है जिसके हर एक दिन को पवित्र माना जाता है। इसलिए इसके हरेक दिन पवित्र स्नान करने की सलाह दी गई है। शास्त्रों एवं पुराणों के अनुसार पौष माह की पूर्णिमा से माघ मास की पूर्णिमा का समय पवित्र स्नान का समय होता है। इस दौरान गंगा, यमुना, सरस्वती, कृष्णा, कावेरी, ब्रह्मपुत्र व अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने से मनुष्य को सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। माघ स्नान के दौरान श्रद्धालु पवित्र नदियों के किनारे कल्पवास, व्रत व दान करते हैं।
हिंदू धर्मग्रंथों में माघ स्नान का उल्लेख
माघ स्नान का उल्लेख हमें कई हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है। महाभारत के एक दृष्टांत में तीर्थ स्थल पर स्नान करते हुए श्रद्धालुओं का वर्णन मिलता है। वहीं पद्म पुराण में कहा गया है कि किसी अन्य माह में जप, तप और दान करने से भगवान विष्णु उतने प्रसन्न नरहीं होते जितने कि माघ मास में स्नान करने से होते हैं।
निर्णय सिंधु में माघ मास के दौरान कम से कम एक बार तीर्थ स्नान करने की सलाह दी गई है। इसका उल्लेख हमें इस श्लोक में मिलता है...
मासपर्यन्त स्नानासम्भवे तु त्रयहमेकाहं वा स्नायात्यत्
अर्थात्, जो लोग लंबे समय तक स्वर्गलोक का आनंद लेना चाहते हैं, उन्हें माघ मास में सूर्य के मकर राशि में होने पर तीर्थ स्नान अवश्य करना चाहिए।
माघ स्नान का महत्व
धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से माघ स्नान का बहुत अधिक महत्व है। ज्योतिषियों ने माघ मास में व्रत और पवित्र नदी में नित्य स्नान करने की सलाह दी है। इस माह में दान और गरीबों की सेवा करने से आपको शुभ फल प्राप्त होते हैं। इस माह में सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस दौरान स्नान और दान का महत्व व पुण्य और अधिक बढ़ जाता है। इस दौरान पवित्र नदियों के किनारे निवास का भी महत्व है जिसे कल्पवास कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि व्रत करने और इष्टदेव (ईश्वर का वह रूप जिसमें आपकी सबसे अधिक श्रद्धा हो) के मंत्र का जाप करने से आत्म संयम की प्राप्ति होती है।
वेदों एवं पुराणों के अनुसार माघ माह में सभी, नदियों एवं तालाबों का जल पवित्र हो जाता है इसलिए इस दौरान इन नदियों में स्नान करने से आपके सभी रोग दूर हो जाते हैं और आपकी रोग प्रतिरोधक प्रणाली मज़बूत होती है। वहीं कल्पवास के ज़रिए आप बेहद कम सुविधाओं में एक अनुशासित जीवन जीते हैं इसलिए इससे आप सब्र करना सीख़ते हैं।
कब करें स्नान?
जैसा कि पुराणों में उल्लेख किया गया है कि माघ मास का हर एक दिन पवित्र है। इसलिए इस माह के प्रत्येक दिन आपको पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। यदि ऐसा संभव न हो तो माघ माह में तीन दिन पवित्र नदी में स्नान अवश्य करें। प्रयागराज में इस तरह का तीन बार का स्नान 10,000 अश्वमेध यज्ञ के पुण्य के बराबर है। पवित्र स्नान के लिए माघ मास की कुछ तिथियों का विशेष महत्व है। वे तिथियां हैं:
पौष पूर्णिमा: 10 जनवरी, 2020
मकर संक्रांति: 15 जनवरी, 2020
मौनी अमावस्या: 24 जनवरी, 2020
माघ शुक्ल पक्ष पंचमी अथवा बसंत पंचमी: 29 जनवरी, 2020
माघ पूर्णिमा: 9 फरवरी, 2020
महाशिवरात्रि: 21 फरवरी, 2020
यहां यह बात ध्यान देने वाली है कि माघ स्नान के कुछ विशेष दिन जैसे कि माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि माघ माह में नहीं पड़ते लेकिन फिर भी इन्हें माघ स्नान में अंतर्निहित किया गया है।
माघ स्नान के नियम
माघ स्नान से जुड़ी महत्वपूर्ण परंपराएं और नियम इस प्रकार हैं:
- माघ मास में सूर्य को अर्घ्य देने का बहुत महत्व है। इसके लिए सूर्योदय से पूर्व उठकर पवित्र नदी में स्नान करें और तांबे के लोटे में जल डालकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्यदेव को जल अर्पित करें:
भास्कराय विद्महे । महद्द्युतिकराय धीमहि ।
तन्नो आदित्य प्रचोदयात ॥
इसका अर्थ है कि तेज के भंडार को हम जानते हैं। अत्यंत तेजस्वी और प्रकाशमय सूर्य का हम ध्यान करते हैं। वह आदित्य (अर्थात् सूर्य) हमें बुद्धि प्रदान करे। -
- यदि किसी तीर्थस्थल पर स्नान करना संभव न हो तो अपने आस पास के किसी तालाब, कुएं या नदी में आप स्नान कर सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि माघ मास के दौरान सभी जल स्रोत पवित्र हो जाते हैं।
- पवित्र नदी में स्नान करना संभव न हो तो घर में भी आप माघ स्नान कर सकते हैं। इसके लिए सुबह जल्दी उठकर सूर्य की किरणों में तपे जल से स्नान करें। स्नान करने से पूर्व इसमें गंगा, यमुना, सरस्वती आदि पवित्र नदियों को याद करते हुए उनका जल मिला लें। इसके बाद तांबे के लोटे में सूर्य को अर्घ्य दें और उसी मंत्र का जाप करें।
- इस दिन व्रत रखें और दान करें। आप इस दिन जूते, रजाई, कंबल, स्वेटर आदि शीत निवारक वस्तुएं दान कर सकते हैं। दान करते वक्त “माधव: प्रीयताम्” (अर्थात् भगवान विष्णु के प्रति और कृपा से दान करता हूं) वाक्य बोलें।
प्रयागराज में कल्पवास का महत्व
त्रिवेणी संगम (यानि गंगा, यमुना सरस्वती का संगम स्थल) तीर्थराज प्रयाग में प्रत्येक वर्ष माघ मास में माघ मेले का आयोजन किया जाता है। देश के विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्धालु यहां आते हैं और कल्पवास करते हैं। इस दौरान खुद को पूरी तरह से भौतिक सुविधाओं से दूर रखा जाता है। गंगा तट पर रहकर तप, व्रत, दान और यज्ञ कर ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और धार्मिक प्रवचन सुनते हुए पूरा दिन सत्संग में बिताया जाता है।
माघ स्नान की कथा
स्कंद पुराण के रेवाखंड में पुराण संहिता का विस्तृत वर्णन है। इसी खंड में हमें नर्मदा और कावेरी समेत कई पवित्र नदियों का उल्लेख मिलता है। यहां पढ़िए नर्मदा नदी में माघ स्नान से जुड़ी यह कथा...
इस कथा के अनुसार नर्मदा तट पर शुभव्रत नामक एक ब्राह्मण निवास करते थे। वे बहुत ज्ञानी थे। शास्त्रों एवं वेदों की उन्हें अच्छी जानकारी थी इसलिए अपने जीवन में उन्होंने बहुत अधिक धन कमाया। लेकिन धन अर्जित करने के लालच में वे जीवन के अन्य पहलुओं की ओर ध्यान न दे सकें। उसकी सारी उम्र धन संचय करने में ही निकल गई।
एक दिन ब्राह्मण को खुद इसका आभास होता है। उसे लगता है कि धन कमाने में तो सारी ज़िंदगी निकल गई। अब परलोक को सुधारना चाहिए। वह एक श्लोक पढ़ता है जिसमें माघ माह में नर्मदा नदी में स्नान करने के महत्व के बारे में बताया गया होता है। यह पढ़कर ब्राह्मण नर्मदा नदी में स्नान करता है। लेकिन बीमार हो जाने के कारण उसकी मृत्यु हो जाती है। पर, क्योंकि उसने पवित्र नदी नर्मदा में स्नान किया था इसलिए उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।