नवरात्र का चौथा दिन: ऐसे करें मां कूष्माण्डा की उपासना, पूरी होगी हर मनोकमना
Indian Astrology | 27-Mar-2020
Views: 5202नवरात्र चल रहे हैं। हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जा रही है। नवरात्र के चौथे दिन नवदुर्गा की चौथी शक्ति देवी कूष्माण्डा की पूजा की जाती है। कूष्माण्डा माता सूर्य के प्रकाश जैसी तेजस्वी हैं। इनका रूप बेहद मोहक और प्रेरणादायी है। इनकी ख़ासियत इनके चेहरे की मुस्कान है जो बताती है कि कठिन परिस्थितियों का सामना हंसकर भी किया जा सकता है। मां कूष्माण्डा ने भी अपनी हंसी से ही इस सृष्टि की रचना की थी।
मां की हंसी अपने भक्तों को सदा सकारात्मक बने रहने का संदेश देती है। इनकी आराधना करने से आप में हिम्मत आती है। आप मज़बूत बनते हैं जिससे कि आप ख़ुद को मुश्किल हालातों के लिए तैयार करते हैं। आप तनावपूर्ण स्थितियों का सामना आसानी से कर पाते हैं। तो आइए, आपको बताते हैं कि नवरात्र के चौथे दिन कैसे करें मां कूष्माण्डा की आराधना? जानिए, पूजा विधि, मंत्र, स्तुति, आरती, इसके पौराणिक व धार्मिक महत्व और मां कूष्माण्डा के स्वरूप के बारे में...
पौराणिक संदर्भ
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार देवी कूष्माण्डा ने ही इस सृष्टि की रचना की थी। देवी पुराण के अनुसार अपनी मधुर हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण ही इन्हें मां कूष्माण्डा का नाम मिला था। मान्यता है कि जब सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं था और चारों तरफ़ अंधकार था तब मां कूष्माण्डा ने ही अपनी मधुर हंसी से ब्रह्माण्ड की रचना कर डाली थी। इसीलिए इन्हें आदि शक्ति के रूप में पूजा जाता है।
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मां कूष्माण्डा का स्वरूप
मां कूष्माण्डा का स्वरूप बेहद मोहक और प्रेरणादायी है। मां के चेहरे की मुस्कान अपने भक्तों के दर्द पर मरहम का काम करती है। वह दर्द और कष्टों में भी मुस्कुराने के लिए प्रेरित करती हैं। मां की आठ भुजाएं हमें कर्मयोगी जीवन की ओर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। मां अपनी आठ भुजाओं में क्रमश: कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा धारण किए हुए हैं। मां के आठवें हाथ में बिजरंके (कमल के फूल के बीज) की माला है। यह माला भक्तों को सभी प्रकार की ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करती है। मां सिंह पर सवार हैं। नवरात्र के चौथे दिन मां दुर्गा के इस मोहक रूप की ही उपासना की जाती है।
मां कूष्माण्डा की उपासना का महत्व
मां कूष्माण्डा की उपासना करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। मां की कृपा से भक्त रोग-मुक्त और दीर्घायु होते हैं। उनकी सभी बाधाएं दूर होती हैं और उन्नति और आय के नए मार्ग खुलते हैं। मां उन्हें, यश, धन और बल प्रदान करती हैं। मां की भक्ति भक्तों को कठिन परिस्थियों का सामना करने की हिम्मत देती है। उनकी उपासना से आप मज़बूत बनते हैं। मां आप में सकारात्मक ऊर्जा भर्ती हैं जिससे कि आप नकारात्मक शक्तियों का सामना आसानी से कर पाते हैं। आप हमेशा तनाव मुक्त रहकर मुस्कुराते रहते हैं। आपकी मुस्कान न केवल आपको बल्कि आपके प्रियजनों को भी हिम्मत देती है।
मां कूष्माण्डा सूर्य की तरह तेजस्वी होती हैं। इनका सूर्य पर नियंत्रण होता है इसलिए इनकी उपासना से सूर्य ग्रह से संबंधित सभी दोष दूर होते हैं।
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मां कूष्माण्डा की पूजन विधि
मां कूष्माण्डा की पूजा शास्त्रीय एवं वैदिक नियमों के अनुसार करनी चाहिए। इसके लिए रोज़ की तरह प्रात: जल्दी उठकर स्नानादि करके सबसे पहले कलश की पूजा करनी चाहिए। उसके बाद मां कूष्माण्डा को प्रणाम करके स्मरण करना चाहिए। इस दिन हरे आसन पर बैठकर पूजा करना शुभ माना जाता है। धूप-दीप जलाकर पूजा में देवी को विविध प्रकार के फूल, और नैवेद्य अर्पित करने चाहिए। मां को अपनी क्षमतानुसार विभिन्न फलों का भोग लगाना चाहिए। इस दिन नौवेद्य में मालपुए को ज़रूर शामिल करना चाहिए। पूजा के बाद इसे ब्राह्मणों को दान करना चाहिए। ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं और आपके सभी विघ्न दूर करती हैं।
पूजा करने के बाद घर के बड़ों का आशीर्वाद लेकर सभी को प्रसाद बांटना चाहिए। मां से परिवार और घर की ख़ुशहाली की कामना करनी चाहिए। यदि आपके घर में कोई व्यक्ति लंबे अरसे से बीमार है तो मां कूष्माण्डा की आराधना करते समय उसके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करें। सच्चे मन से की गई प्रार्थना से मां अवश्य प्रसन्न होती हैं और आपकी हर इच्छा पूरी करती हैं। उनकी कृपा से वह व्यक्ति अवश्य स्वस्थ हो जाएगा।
मां के पूजन में कुछ विशेष मंत्रों को शामिल करने से उचित फल मिलते हैं। इस दिन मां कूष्माण्डा की कथा ज़रूर पढ़ें या सुनें। मां की स्तुति और आरती करें और किसी योग्य पंडित से अपनी क्षमतानुसार दुर्गा सप्तशती का पाठ (Durga Saptashati Path) करवाएं।
मां कूष्माण्डा की व्रत कथा
दुर्गा सप्तशती में मां कूष्माण्डा से संबंधित एक मंत्र दिया गया है…
कुत्सित: कूष्मा कूष्मा-त्रिविधतापयुत: संसार:।।
स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्या: सा कूष्मांडा।।
अर्थात्, वह देवी जिनके उदर (पेट) में त्रिविध तापयुक्त संसार है वह मां कूष्माण्डा है।
देवी कूष्माण्डा संसार की जननी मानी जाती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार जब देवी कूष्माण्डा का जन्म नहीं हुआ था तब संसार पर अंधकार का शासन हुआ करता था। उस समय देवी कूष्माण्डा प्रकट हुईं। उनके चेहरे पर मधुर मुस्कान थी। इस मुस्कान से उम्मीद जगी और सोई हुई सृष्टि की पलकें झपकने लगीं। फ़िर जैसे कि फूल में अण्ड (अर्थात् बीज) का जन्म होता है उसी प्रकार मां की हंसी से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई। इसीलिए देवी को कूष्माण्डा कहा गया।
पौराणिक ग्रंथों में देवी कूष्माण्डा का स्थान सूर्यमंडल के मध्य में माना गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार देवी कूष्माण्डा सूर्यमंडल को नियंत्रण में रखती हैं। देवी कूष्माण्डा की कांति और प्रभा सूर्य के समान ही तेजस्वी है। इनकी आठ भुजाएं हैं इसलिए इन्हें अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है।
मंत्र
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
प्रार्थना (श्लोक)
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
मां कूष्माण्डा की स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थ: हे मां! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मैं बारंबार प्रणाम करता/करती हूं। हे मां! मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।
ध्यान
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
भास्वर भानु निभाम् अनाहत स्थिताम् चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पद्म, सुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कोमलाङ्गी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहि दुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
आरती
कूष्माण्डा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥
पिङ्गला ज्वालामुखी निराली। शाकम्बरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे। भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदम्बे। सुख पहुँचती हो माँ अम्बे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
मां कूष्माण्डा का पसंदीदा फूल
मां कूष्माण्डा को लाल रंग के फूल बहुत प्रिय होते हैं, इसलिए मां की आराधना करते समय उन्हें विविध प्रकार के लाल पुष्प ज़रूर अर्पित करें।
शुभ रंग
मां कूष्माण्डा का स्वरूप सूर्य के समान तेजस्वी है। सूर्य की तरह ही वे अंधकार का नाश करके आपके जीवन में प्रकाश लेकर आती हैं। इससे संबंधित रंग लाल है इसलिए आप इस दिन मां को प्रसन्न करने के लिए लाल रंग के वस्त्र धारण करें।
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