जातक की जन्म पत्रिका में नवम भाव की स्थिति से जानिए, कैसा रहेगा जातक का भाग्य
Future Point | 21-Jun-2019
Views: 8032सनातन धर्म के अनुसार किसी भी व्यक्ति के जीवन में कर्म व भाग्य दोनों का ही विशेष महत्व होता है, अतः व्यक्ति के जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्ति के लिए उसके कर्म के साथ- साथ उसके भाग्य का प्रबल होना भी अति आवश्यक होता है परन्तु कुछ लोग भाग्य और कर्म में से किसी एक की श्रेष्ठता का दावा कर जन मानस में भ्रांति उत्पन्न करते हैं परन्तु ये सच है कि व्यक्ति को अपने जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए कर्म के साथ भाग्य और भाग्य के साथ कर्म दोनों ही आवश्यक होते हैं, अतः कई व्यक्तियों के जीवन में भी यह अनुभव अवश्य ही आया होगा कि किसी व्यक्ति को अथक परिश्रम के पश्चात भी यथोचित सफलता की प्राप्ति नहीं होती है तो वहीं किसी व्यक्ति को अपेक्षाकृत कम परिश्रम से भी लाभ प्राप्त हो जाया करता है, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में बीच के स्थान यानी लग्न से लेकर नौवां स्थान भाग्य का स्थान माना जाता है अतः कुंडली का यह नवम स्थान तय करता है कि व्यक्ति का भाग्य कैसा होगा, कब चमकेगा और कब उसे प्रगति के मार्ग पर ले कर जाएगा।
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जन्म पत्रिका में नवम भाव की स्थिति जातक के लिए कैसा भाग्य दर्शाती है -
- यदि किसी व्यक्ति की जन्म पत्रिका में नवम भाव का स्वामी नवम भाव में ही हो तो ऐसी स्थिति में जातक भाग्य लेकर ही पैदा होता है और उसे जीवन मे अधिक तकलीफों का सामना नही करना पड़ता है, और यदि व्यक्ति इस भाव के स्वामी रत्न का धारण विधिपूर्वक कर लें तो तेजी से भाग्य में वृद्धि होने लगती है।
- यदि किसी व्यक्ति की जन्म पत्रिका में नवम भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तो भाग्य भाव से द्वादश होने के कारण व अष्टम अशुभ भाव में होने के कारण ऐसे जातकों को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है अत: ऐसे जातक नवम भाव की वस्तु को अपने घर की ताक पर एक वस्त्र में रखें तो इससे भाग्य में वृद्धि होती है।
- यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में नवम भाग्यवान का स्वामी षष्ट भाव में हो तो उसे अपने शत्रुओं से भी लाभ होता है, और यदि नवम षष्ट में उच्च का हो तो वो स्वयं कभी कर्जदार नहीं रहेगा न ही उसके शत्रु होंगे, ऐसी स्थिति में व्यक्ति को उक्त ग्रह का नग धारण नहीं करना चाहिए।
- यदि किसी व्यक्ति की जन्म पत्रिका में नवम भाव का स्वामी यदि चतुर्थ भाव में स्वराशि या उच्च का या मित्र राशि का हो तो वह व्यक्ति उस ग्रह का रत्न धारण करें तो भाग्य में अधिक उन्नति होगी, इसके अलावा ऐसे जातकों को जनता संबंधित कार्यों में, राजनीति में, भूमि-भवन-मकान के मामलों में सफलता मिलती है, ऐसे जातक को अपनी माता का अनादर नहीं करना चाहिए।
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- यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में नवम भाव का स्वामी यदि नीच राशि का हो तो उससे संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए और जब कि स्वराशि या उच्च का हो या नवम भाव में हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तुओं के दान करने से बचना चाहिए।
- यदि किसी व्यक्ति की जन्म पत्रिका में नवम भाव में गुरु हो तो ऐसे जातक धर्म- कर्म को जानने वाला होता है, अतः ऐसे जातक को पुखराज रत्न धारण करना चाहिए इससे यश-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।
- यदि किसी व्यक्ति की जन्म पत्रिका में नवम भाव में स्वराशि का सूर्य या मंगल हो तो ऐसे जातक उच्च पद पर पहुंचते हैं और सूर्य व मंगल जो भी हों उससे संबंधित रंगों का प्रयोग करना चाहिये इससे भाग्य में वृद्धि होती है।
- यदि किसी व्यक्ति की जन्म पत्रिका में नवम भाव का स्वामी दशमांश में स्वराशि या उच्च का हो व लग्न में शत्रु या नीच राशि का हो तो उस व्यक्ति को उस ग्रह का रत्न पहनना चाहिए, ऐसा करने से राज्य, व्यापार, नौकरी जिसमें हाथ डाले उसमें जातक को सफलता अवश्य प्राप्त होगी।
- यदि किसी व्यक्ति की जन्म पत्रिका में नवम भाव की महादशा या अंतरदशा चल रही हो तो उस जातक को उक्त ग्रह से संबंधित रत्न अवश्य धारण करना चाहिए, ऐसा करने से व्यक्ति अपने भाग्य में वृद्धि कर सफलता प्राप्त कर सकते हैं ।
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