मनुष्य योनि से देवयोनि की यात्रा - मनुष्य एक भटका हुआ देवता
पास और दूर दोनों को अनदेखा करने का स्वभाव मनुष्य का सदैव से ही रहा है, मनुष्य स्वभाव है कि जो उपलब्ध है उसका मूल्य शून्य है, जो उपलब्ध नहीं है, उसी का मूल्य है। मनुष्य जीवन मिला उसका मूल्य मनुष्य ने नहीं जाना.
आचार्या रेखा कल्पदेव | 05-Apr-2024  4030